अरे ओ गृहस्थ !! तेरा आश्रम बड़ा ऊँचा है !! भीख मांगते है तुजसे दुसरे आश्रमों वाले !! अपने आश्रम को सम्हाल !! बहोत पवित्र आनंद मय !! जगत के कल्याण विकास का ये महत्त्व का आश्रम छोड़ कर !! जिम्मेदारी खो कर क्यों भटकता है व्यर्थ लालच में !!!मन मुरख तू कहा फिरत है हरी तो तेरे पास !!!
सबसे बड़ा आश्रम गृहस्थश्रम है !!जिसमे पुरुष पति के रूप में स्त्री बच्चो से भरा आश्रम जीवित रखता है !!जिम्मेदारी उठाता है !!
सबसे बड़ा आश्रम गृहस्थश्रम है !!जिसमे पुरुष पति के रूप में स्त्री बच्चो से भरा आश्रम जीवित रखता है !!जिम्मेदारी उठाता है !!
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