ये अच्छा नहीं है !! कर्मकांड पूजा में मैंने देखा है कई पूजा करने वाले ब्रह्मण लोग टोबेको गुठका खाते है !! क्या उपदेश देंगे यह ? जो अपने कर्म में चोरी करता है उसे क्या कहे !! व्यसन से तो मानसिक आर्थिक या सांसारिक दरिद्र्यता ही है !! शिवजी ने जहर भंग गंजा चरस यह सब का विषपान किया है संसार के लिए !! कंठ नीला बन गया है !!व् उसे कंठ में रोक लिया है !! दुःख तो यह है की सभी जानते है शिव को अर्पण कर दिया वह त्याज्य ही है !! शिव की महान सेवा अवं जन उपदेश को लों ध्यान में न रखकर भंग में रचे रहते है !! असत्य को सत्य बनाने के लिए शिव के गुनाहगार बनते है ये सभी !!!
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